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कोहरे में भी रफ्तार से चलेंगी ट्रेनें, रेलवे ने किया ये खास इंतजाम
संजय सिंह, नई दिल्ली। हर बार की तरह इस वर्ष भी सर्दियां बढ़ने के साथ ही रेल यातायात पर कोहरे की मार पड़ने लगी है, लेकिन इस मर्तबा रेल मंत्रालय ने कोहरे से निपटने के लिए पहले की अपेक्षा ज्यादा और बड़े स्तर पर तैयारियां की हैं। इसके लिए उत्तर भारत की प्रमुख ट्रेनों में कोहरे में भी लोको पायलट को सिगनल की जानकारी देने वाली सात हजार फॉग पास डिवाइस लगाई गई हैं। इसके अलावा...
more... साढ़े पांच हजार डिवाइस और खरीदने के आदेश दे दिए गए हैं। इससे उम्मीद है कि इस बार न तो ट्रेने उतनी लेट होंगी और न ही बड़ी संख्या उन्हें रद करने की जरूरत पड़ेगी।
कोहरे से निपटने के लिए रेलवे ने उत्तर भारत के कोहरा संवेदी पांच जोनों की सभी प्रमुख मेल, एक्सप्रेस तथा पैसेंजर ट्रेनों में फॉग पास डिवाइस (इसे फॉग सेफ डिवाइस भी कहा जाता है) लगाने के इंतजाम किए हैं। कुल मिलाकर 6940 फॉग पास डिवाइस बांटी गई हैं। जिनमें सबसे ज्यादा 2648 डिवाइस उत्तर रेलवे को मिली हैं। जबकि 537 उत्तर-मध्य रेलवे, 975 उत्तर-पूर्व रेलवे, 1101 पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे तथा 802 डिवाइस उत्तर-पश्चिम रेलवे के हिस्से में आई हैं।
रेल मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक इन डिवाइसों का वितरण नवंबर में ही कर दिया गया था। तब तक कई जोन 600 फॉग पास डिवाइस लगा चुके थे। मंत्रालय ने पिछले दिनो 5400 फॉग सेफ डिवाइस और खरीदने के आर्डर दिए हैं। इन सबके लग जाने के बाद कोहरे की समस्या पर काफी हद तक काबू पा लिए जाने की उम्मीद है।
फॉग पास या फॉग सेफ डिवाइस जीपीएस आधारित उपकरण है। जिसका एक हिस्सा इंजन केबिन में और दूसरा सिगनल पोल पर लगाया जाता है। इससे लोको पायलट को बिना बाहर देखे आगे आने वाले सिगनल के बारे में अग्रिम सूचना प्राप्त हो जाती है।
कोहरे में सुरक्षित ट्रेन संचालन के लिए पिछले वर्षो में रेलवे ने एक अन्य नया तरीका भी अपनाना शुरू किया है। यह है सिगनल से पहले इलेक्टि्रक पोल्स पर रिफ्लेक्टर्स लगाने का। इंजन हेडलाइट की रोशनी पड़ने पर ये रिफ्लेक्टर्स चमकते हैं जिससे ड्राइवर को अगले सिगनल का अंदाजा हो जाता है।
इसके अलावा ट्रैक पर पटाखे अर्थात डिटोनेटर्स लगाने जैसे पुराने तरीके भी आजमाए जा रहे हैं। इसके लिए कर्मचारी तैनात किए गए हैं। जब ट्रेन का पहिया डिटोनेटर पर पड़ता है तो पटाखे की आवाज से लोको पायलट को आगामी सिगनल का आभास हो जाता है। इतना ही नहीं, ट्रेनों के बीच दूरी मेंटेन रखने के लिए गार्ड वैन में आधुनिक एलईडी फ्लैशर टेल लैंप भी लगाए गए हैं।
मगर घने कोहरे में कोई तकनीक काम नहीं करती। ऐसे में ट्रेनों में गति सीमा का 'ट्राइड एंड टेस्टेड फार्मूला' ही रेलवे के काम आता है। यह अलग बात है कि इसका खामियाजा यात्रियों को ट्रेनो की लेटलतीफी के रूप में भुगतना पड़ता है। साथ ही पायलट और गार्ड के काम के घंटे और थकान भी बढ़ जाती है। इस समस्या के समाधान के लिए विशेष ट्रेनिंग के साथ अतिरिक्त लोको पायलट और गार्ड की तैनाती की गई है। साथ ही यात्रियों की मदद के लिए अतिरिक्त टिकट, पूछताछ और आरक्षण काउंटर भी खोले गए हैं।
इससे पहले कोहरे को लेकर रेलवे का रवैया कामचलाऊ था। अफसरों का जवाब होता था कि कोहरे की समस्या सीमित समय और भौगोलिक दायरे की है। इसलिए इस पर ज्यादा खर्च संभव नहीं है। लेकिन जबसे सरकार ने एक लाख करोड़ रुपये के राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष की स्थापना की है, इस सोच में परिवर्तन आया है।
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